प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी !
भाजपा में वाजपेयी के बाद अकेले जननेता
आलोक तोमर
नरेंद्र मोदी, जब कभी भाजपा में सत्ता में आई तो देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. मैं यह नहीं कह रहा कि वे बन सकते हैं बल्कि कह रहा हूं कि बनेंगे ही. इस निष्कर्ष से बहुतों को ऐतराज हो सकता है और उनमें काफी हद तक मैं भी शामिल हूं लेकिन आप सच को कब तक किनारे कर सकते हैं? आपके कहने से लालू यादव जोकर से दार्शनिक नहीं हो जाएंगे और अब्दुल करीम तेलगी धर्मराज नहीं बन जाएगा.
आप चाहें तो इस बात से संतोष कर सकते हैं कि राजनैतिक परिभाषा में भरी जवानी में मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे. बासठ साल के वे हो चुके हैं, अगले चुनाव में भाजपा या उसके मोर्चे की सरकार बनेगी ही, इसकी कोई गारंटी नहीं और उसके बाद का चुनाव अगर अपने तय समय पर हुआ तो मोदी बहत्तर साल के हो जाएंगे. उस समय तक राजनीति क्या करवट लेती है और अटल बिहारी वाजपेयी की अधूरी उपस्थिति और भगवान न करें, अनुपस्थिति पार्टी की पहचान पर क्या असर डालती है, यह जरूर एक महत्वपूर्ण सवाल है.
आज की तारीख में भाजपा में अगर कोई जन नेता है तो अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा नरेंद्र मोदी का ही नाम लिया जा सकता है. वाजपेयी के अलावा मोदी की ही सभाओं में लाखों की भीड़ होती है और वे वाजपेयी की तरह सहज वक्ता नहीं हैं लेकिन भीड़ को बांध कर रखना उन्हें अच्छी तरह आता है. मुहावरे वे गढ़ लेते हैं, जहां जरूरत होती है, वहां वही भाषा बोलते हैं और अच्छे-अच्छे खलनायकों को हिट करने वाली और दर्शकों को मुग्ध करने वाली जो बात होती है, वह मोदी में भी है कि वे अपने किसी कर्म, अकर्म या कुकर्म पर शर्मिंदा नजर नहीं आते.
संघियों के लिए भले आदमी
लाल कृष्ण आडवाणी का भारत उदय तो नहीं चला लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपने गुजरात का अच्छा-खासा उदय करवा डाला. टोटकों में उन्हें यकीन नहीं है. आपको याद होगा कि महेंद्र सिंह धोनी की टीम जब विश्व विजेता बन कर लौटी थी तो हर खिलाड़ी के राज्य ने उन पर उपहारों की बरसात कर दी थी. किसी को करोड़ मिले थे तो किसी को विदेशी कार. सबसे बाद में देर रात गांधीनगर से एक छोटी सी खबर आई थी कि इरफान पठान और उनके भाई यूसुफ पठान को मिला कर सरकार ने दो लाख रुपए का इनाम दिया था.
सच तो यह है कि भारत में बहुत कम राजनेता ऐसे हैं, जो केंद्रीय राजनीति की मुख्यधारा में नहीं हैं लेकिन केंद्रीय राजनीति उन्हीं के आसपास घूमती रहती है. नरेंद्र मोदी गोधरा के खलनायक हैं मगर संघ परिवार, भाजपा और कुल मिला कर हिंदुओं के बीच भले आदमी माने जाते हैं. पिछली बार जब वे दोबारा मुख्यमंत्री बने थे तो विधानसभा की 182 सीटों में से 126 का प्रचंड बहुमत उन्हें मिला था. यह तब हुआ था, जब गोधरा की यादें ताजा थीं और तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से ले कर खुद अटल बिहारी वाजपेयी तक ने गुजरात की निन्दा की थी.
नरेंद्र मोदी ने काफी कुछ स्वर्गीय प्रमोद महाजन की तरह राजनीति में अपनी जगह खुद बनाई है. घर द्वारा छोड़ा, पत्नी की शक्ल बहुत दिनों बाद शायद अखबारों और टीवी पर ही देखी होगी और संघ के स्वयंसेवक बन गए. जल्दी ही प्रचारक बनें और जब उनकी लोकप्रियता बढ़ती दिखी तो उन्हें संघ परिवार के निर्देश पर ही राजनीति में ले आया गया. पहले गुजरात की राजनीति और फिर दिल्ली में महासचिव बन कर उन्होंने आधार और रणनीति दोनों अर्जित किए.
कुतर्की विजयी भवः
आज कल सुना है कि वे शौकीन हो गए हैं लेकिन काफी समय तक दिल्ली में भाजपा के मुख्यालय 11, अशोक रोड के पिछवाड़े एक छोटे से कमरे में वे दूसरे महासचिव गोविंदाचार्य के साथ रहते थे. उस कमरे में एक ही फोन था और बिस्तर जमीन पर लगते थे. श्री मोदी जब पार्टी कार्यालय के अपने कमरे में आते थे तो उसका दरवाजा खुला रहता था. गोविंदाचार्य और मोदी के बीच एक आधारभूत फर्क यह था कि गोविंदाचार्य जटिल हिंदूवाद को तर्कों के सहारे प्रतिपादित करते थे तो नरेंद्र मोदी कुतर्कों के सहारे. यह तो आप जानते हैं कि राजनीति में आम तौर पर कुतर्क जीतते हैं.
नरेंद्र मोदी पर आरोप है कि गोधरा का दंगा उन्होंने प्रायोजित करवाया. उन्होंने इसका जाहिर तौर पर खंडन किया है लेकिन इस दंगे के नैसर्गिक और स्वाभाविक होने के पक्ष में तमाम दलीलें दी हैं. इस पूरे हादसे की जांच अब भी चल रही है और मोबाइल फोन रिकॉर्डों के जरिए यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि यह दंगा असल में मुख्यमंत्री निवास से संचालित हो रहा था. उस समय तक नरेंद्र मोदी अपना मोबाइल फोन नहीं रखते थे.
आम स्वयंसेवकों की तरह नरेंद्र मोदी, जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया वाले मामले में यकीन नहीं करते. वे अब रेशमी कपड़े पहनते हैं और महंगे मोबाइल फोन और लैपटॉप अपने पास रखते हैं. वे देश के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्हें अमेरिका ने वीजा देने से इनकार कर दिया था क्योंकि एफबीआई की रिपोर्ट थी कि मोदी के वहां आने से वहां रह रहे लाखों मुसलमानों में से कुछ हिंसा के लिए तत्पर हो सकते हैं. मोदी के मुद्दे भी कमाल के होते हैं. पिछला पूरा विधानसभा चुनाव उन्होंने मुशर्रफ को गालियां दे कर लड़ा और धड़ल्ले से जीता.
भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बाद जननायक किस्म के नेताओं की कोई कतार खड़ी नहीं की गई. उमा भारती और सुषमा स्वराज में यह संभावना थी लेकिन संघ परिवार महिलाओं को नेतृत्व में आगे रखने के लिए नहीं जाना जाता. कम लोग जानते हैं कि भाजपा के जिन नेताओं के कांग्रेस और यहां तक कि कट्टर दुश्मन वामपंथियों के साथ भी काफी अच्छे और आत्मीय रिश्ते वाले सूत्र हैं. अगर भाजपा जैसा दल अपना अखिल भारतीय नेतृत्व नरेंद्र मोदी में खोज रहा है तो यह उसका अपना मामला है लेकिन यह जरूर जाहिर हो जाता है कि भारतीय राजनीति में लोकप्रियता कोई अचल संपत्ति नहीं होती है. अटल बिहारी वाजपेयी एक अपवाद जरूर हैं.
इस बात से डरने की कोई जरूरत नहीं है कि नरेंद्र मोदी आएंगे तो देश से मुसलमानों का सफाया कर देंगे, उनका पर्सनल लॉ खत्म कर देंगे और धारा 370 खत्म करके जरूरी हुआ तो कश्मीर में अनिश्चित कालीन आपातकाल लगा देंगे. इस देश का लोकतंत्र इतना बालिग हो चुका है कि वह अगर किसी को सिर पर बिठाता है तो गर्दन को झटका देने का विकल्प भी मौजूद रखता है. इतने बड़े देश में सिर्फ हिंदू एजेंडे से शासन नहीं किया जा सकता. भारत नेपाल नहीं है और अब तो नेपाल भी नेपाल नहीं है.
Thursday, March 6, 2008
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