Thursday, March 6, 2008
फिर एक मासूम कश्मीरी और फिर तिहाड
फिर एक मासूम कश्मीरी और फिर तिहाड
परवेज राडू की दर्दनाक कहानी
आलोक तोमर
तीन साल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक ऐसा कश्मीरी आतंकवादी कैद है, जिसके बारे में कश्मीर पुलिस ने लिख कर दिया है कि वह आतंकवादी नहीं है, दिल्ली पुलिस को झूठा बताते हुए स्पाइस जेट एयरवेज ने उसके यात्रा विवरण देते हुए साबित कर दिया है कि आजादपुर सब्जी मंडी से नहीं, बल्कि नई दिल्ली हवाई अड्डे से पकड़ा गया था।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल बेगुनाह कश्मीरियों को गिरफ्तार करके तालियां बजवाने और इनाम लूटने में कुख्यात हो चुकी है। उसकी ज्यादातर गिरफ्तारियां या तो निजामुद्दी रेलवे स्टेशन से होती है या आजादपुर सब्जी मंडी से। पुलिस के अनुसार परवेज अहमद राडू नामक इस युवक से तीन किलो आरडीएक्स और हवाला से आए दस लाख रुपए के अलावा कई संदिग्ध दस्तावेज मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि परवेज पाकिस्तानी इशारों पर दिल्ली में धमाके करने आया था।
जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी बताए गए परवेज राडू के साथ अक्टूबर, 2006 में मैंने भी तिहाड़ जेल में दस दिन बिताए थे। उस समय परवेज ने अपनी पूरी कहानी बताते हुए एक लंबा पत्र भी लिखा था, जिसे मैंने केंद्रीय मंत्री और अब कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष सैफुदीन सोज को दिया था। सोज ने आंसू बहाने का अभिनय तो किया था, लेकिन परवेज अब भी जेल में है। अब परवेज को न्याय दिलाने का मामले का का जिम्मा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने ले लिया है और उसने परवेज के पिता प्रोफेसर सनीउल्ला राडू के हवाले से जो सवाल पूछे हैं, उनका जवाब किसी के पास नहीं हैं।
पुणे विश्वविद्यालय के जीव विज्ञान विभाग में पीएचडी पूरी कर रहे परवेज ने मुझे बताया था कि उसके मोबाइल फोन पर कश्मीर से अक्सर फोन आते थे और इसी आधार पर उसे पकड़ा गया। उसने यह भी कहा था कि एक महीने तक उसे हिरासत में लिए जाने की पुष्टि भी नहीं की गई और उसके मोबाइल फोन पुलिसवाले रिचार्ज कराते रहे और घर पर राजी-खुशी की बातें करवाते रहे। इस दौरान उसकी बेतरह पिटाई की गई, करंट लगाया गया, उल्टा लटका कर पीटा गया और फिर देर रात एक मजिस्टे्रट के यहां पेश करके उसे कैद हुआ घोषित कर दिया गया। बहुत धूमधाम से हुई इस प्रेस कांफ्रेंस का लाइव प्रसारण जब परवेज के परिवार वालों ने देखा, तो वे दिल्ली भागे और उन्होंने पुलिस से अपने बेटे के निर्दोष होने की बात कही।
परवेज के हक में सारे सबूत हैं। कश्मीर के जिस सोपोर शहर का वह रहने वाला है, वहां के पुलिस अधीक्षक, वहां के निवासियों, नगरपालिक और सभी रेजिडेंट्स वैलफेयर एसोसिएशन और स्थानीय बार कांउसिल ने लिख कर दिया है कि परवेज के बारे में कभी आतंकवादियों से रिश्ते की बात सुनी ही नहीं गई और वह पढ़ने-लिखने वाला एक शर्मीला सा लड़का है। परवेज ने मुझे बताया था कि स्पाइस जेट की उड़ान से दिल्ली आ कर जब वह पुण्ो की दूसरी उड़ान पकड़ने जा रहा था, तो उसे स्पेशल सैल स्टाफ ने मामूली जांच-पड़ताल के नाम पर रोक लिया। उसके बाद से वह तिहाड़ जेल में ही है। बीच में कुछ समय उसे स्पेशल सैल द्वारा बनाए गए एक सेफ हाउस नाम के फ्लैट में रखा गया, जिसके बारे में परवेज सिर्फ इतना बता सका था कि वहां पड़ोस में कोई स्कूल था क्योंकि बच्चों और घंटियों की आवाज उसे सुनाई पड़ती थी।
परवेज ने बताया था कि स्पेशल सैल के लोधी रोड स्थित मुख्यालय में उसे हर तरह की यातना दी गई। परिवार वालों को उसी के मोबाइल से यह कहलवाया गया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है और इसीलिए वह जल्दी ही सोपोर पहुंचेगा। इसी दौरान पुलिस की टीम उसे पुणे ले गई और पुलिस के पास पहले से आतंकवादियों के जो नंबर थे, उन पर देश-विदेश में बात करवाई गई। तब तक चूंकि वह आधिकारिक रूप से कैद नहीं था इसीलिए इस बातचीत को अब मुकदमे में उसके आतंकवादी संपर्कों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। परवेज ने बताया था कि पुणे में एक होटल के कमरे में उसे बंद किया गया था और वही स्पेशल सैल के एक सब इंसपेक्टर एक बड़ा बैग ले कर आए थे, जिसमें दस लाख रुपए मौजूद थे। बाद में दिल्ली ला कर उसकी पिटाई करके पहले से लिखे हुए एक इकबालिया बयान पर उसके दस्तखत करवा लिए गए, जिसमें कहा गया था कि ये दस लाख रुपए उसे पाकिस्तानी आतंकवादियों ने दिल्ली में अपना अड्डा जमाने के लिए दिए थे।
जो अब अल्पसंख्यक आयोग कह रहा है, वही उस समय परवेज ने भी कहा था। उसने कहा था कि उसने आरडीएक्स कैसा होता है, यह आज तक देखा ही नहीं है और किसी भी आतंकवादी से उसका दूर-दूर तक कोई संपर्क नहीं है। परवेज के पिता प्रोफेसर समानुल्ला ने जब अल्पसंख्यक आयोग से शिकायत की, तो आयोग ने दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सैल के उपायुक्त आलोक कुमार ने इसी 12 फरवरी को आयोग को पत्र लिख कर बताया कि परवेज अहमद राडू उर्फ राजू जैश ए मोहम्मद का एक सदस्य है, जो हथियार, गोला-बारूद, विस्फोटक और पैसा आतंकवादियों के लिए लाने-ले जाने का काम किया करता था। परवेज के जो आका थे, आलोक कुमार के अनुसार उन लोगों ने ही उसे दिल्ली में अपना अड्डा बनाने के लिए कहा था और इसी के लिए वह दिल्ली आया था। 11 जनवरी, 2007 को परवेज अहमद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरिशंकर शर्मा की अदालत में अभियोगों पर बहस चल रही है।
परवेज की आखिरी पेशी अदालत में 25 फरवरी को हुई थी और 26 तारीख को उससे मिल कर उसके प्रोफेसर पिता अल्पसंख्यक आयोग के पास पहुंचे थे। दिल्ली पुलिस खास तौर पर अपने पिछले पर्याप्त कुख्यात आयुक्त कृष्ण्ा कांत पॉल के जमाने में बहुत ज्यादा सक्रिय हो गई थी और दिल्ली की तिहाड़ जेल में आज भी पचास से ज्यादा ऐसे कश्मीरी कैदी हैं, जिनके खिलाफ कोई मामला मौजूद नहीं है। कश्मीर बार एसोसिएशन ने मांग की है कि इन सभी कैदियों को कश्मीर ले जाया जाए, जहां इन पर निष्पक्षता से मुकदमा चल सके। परवेज राडू का भाग्य कब और कब तक उसका साथ देगा, यह कोई नहीं जानता लेकिन यह सबको पता है कि दिल्ली पुलिस झूठ को सच और काले को सफेद करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ती।
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