Thursday, March 6, 2008

यह क्रिकेट का खेल नहीं धंधा

Friday, February 22, 2008
यह क्रिकेट का खेल नहीं धंधा
प्रभाष जोशी
यह क्रिकेट का खेल नहीं। क्रिकेट का धंधा है। इसमें खेल को उत्पाद बना दिया गया है। खिलाड़ी इस उत्पाद के कारखाने हैं। इन कारखानों की मुंबई में बोली लगाई गई। ट्वेंटी-20 की इंडियन प्रीमियर लीग के लिए ७८ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की बोली लगी और १६८़३२ करोड़ रुपयों में नीलाम हुए। बोली की असली म्रुद्रा तो डॉलर हैं, इसलिए डॉलर में ही बोली लगी। बोली लगाने लिए भी विलायत से आदमी बुलाया गया था, जिसका काम ही बोली लगाना और चीजों को बिकाना है। इस नीलामी को देखकर क्रिकेट बोर्ड के पुर्व अध्यक्ष इंद्र्रजीत सिंह बिंद्रा ने कहा कि उनने अपने जीवन में इससे ज्यादा उतेजक कुछ नहीं देखा।

भगान उनका भला करे। अपने यहां भगवन से बड़ा उनका नाम माना जता है। हमने क्रिकेट से बड़ी उसकी बोली को बना दिया है। दा किया ज रहा है कि इसकेबाद क्रिकेट वैसा नहीं रह जएगा, जसा कि ह डेढ़-दो सौ साल से चला और खेला जा रहा है। बाजर में बिकने के बाद पहले और अपने जसे बने रहने का हक किसी को नहीं रहता। खेल हो, आदमी हो या देश! बंगलुरू की टीम के मालिक जिय माल्या ने कहा, यह भारतीय क्रिकेट केलिए सबसे महान दिन है। आप समङाते रहे होंगे कि भारतीय क्रिकेट केलिए सबसे बड़ा दिन ह रहा होगा, जब कपिल की टीम ने विश्व कप जीता था।

अब अपनी समङा को सुधार लीजिए। खेला गया क्रिकेट कभी उतना महान नहीं होता, जितना खरीदा या बेचा गया क्रिकेट होता है। जिस खेले गए क्रिकेट का बाजर में कोई मोल नहीं होता, ह महान या बड़ा नहीं हो सकता। इसलिए देखिए कि ऑस्ट्रेलिया के जो कप्तान रिकी पोंटिंग इस समय दुनिया के नंबर एक बल्लेबाज हैं, महान बल्लेबाजों में से एक हैं, उन्हें कोलकाता ने महज १़६ करोड़ में खरीद लिया और बंगाल के युवा मनोज तिारी, जो भारत की तरफ से वन डे और टेस्ट मैच खेले तक नहीं हैं, उन्हें दिल्ली ने २़७ करोड़ में लिया है।

लेकिन क्रिकेट का मानदंड लगाना हो, तो सबसे मजेदार मामला ऑस्ट्रेलिया के महान तेज गोलंदाज ग्लेन मैक्ग्रा का है। पिछले दशक भर तेज गोलंदाजी में मैक्ग्रा का बोलबाला रहा है। अभी कुछ समय पहले तक ह वॉर्न और मुरली केबाद सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गोलंदाज थे। मुरली ने वॉर्न को पीछे छोड़ा और कुंबले ने मैक्ग्रा को। मैक्ग्रा गए साल रिटायर हुए, तो क्रिकेट इतिहास के महानतम गेंदबाजों में गिने गए। उनकी मूल कीमत ८0 लाख थी। उन्हें बोली पर चढ़ाया गया, तो कोई भी लेने को तैयार नहीं। अपने राउंड में ह अनबिके रह गए। आखिरकार दिल्ली ने उन्हें१़४ करोड़ में खरीदा।

अब मज देखिए कि भारतीय तेज गेंदबाज १९ बरस के इशांत शर्मा को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में साल भी पूरा नहीं हुआ है। गए साल पाकिस्तान के खिलाफ बंगलुरू टेस्ट में उनने एक पारी में पांच किेट लिए और उन्हें ऑस्ट्रेलिया दौरे पर लिया गया। जहीर खान के चोट खाकर लौटने के कारण ह सिडनी टेस्ट में खिलाए गए। अच्छी गेंदबाजी की। अभी एडिलेड के वन डे में उनने १५0 किलोमीटर से भी तेज एक गेंद देंकी और भारत के क्रिकेट इतिहास के सबसे तेज गोलंदाज हो गए। बेशक ह बड़े तेज और सक्षम गोलंदाज हैं, लेकिन कहां ग्लेन मैक्ग्रा और कहां इशांत शर्मा। मैक्ग्रा का कोई खरीदार नहीं था, पर इशांत शर्मा को कोलकाता ने ३़८ करोड़ में लिया।
ऑस्ट्रेलिया के माइकल हसी को मिस्टर क्रिकेट कहा जता है। टेस्ट में उनकी औसत ८0 और न डे में ५0 से ऊपर है। उनका कोई खरीदार नहीं था। लेकिन उनके छोटे भाई डेडि हसी ढाई करोड़ से ज्यादा में गए। ट्वेंटी-20 का विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के लगभग सब सदस्य औने-पौने दामों में गए। कप्तान धोनी तो सभी से ऊंची कीमत छह करोड़ में गए। लेकिन हसी, रामनरेश सरन, शिनारायण चंद्र्रपॉल, जस्टिन लेंगर, साइमन कटिच, ततिंदा तायबू आदि को कोई पूछने वाला नहीं था। लेकिन इतने विवादो में रहे एंड्रयू सायमंड्स को हैदराबाद ने ५़४ करोड़ में खरीद लिया। धोनी के बाद सबसे बड़ी कीमत पर।

इससे इतना तो आपके सामने साफ हो गया होगा कि इस नीलामी में खेल का कोई महत् नहीं था। क्रिकेटीय क्षमता की बोली नहीं लगाई गई। सबसे बड़ा भा ग्लैमर का था। उसके बाद ािद का। तभी तो एंड्रयू सायमंड्स को कोई साढ़े पांच करोड़ मिले। सयामंड्स अच्छे ऑल राउंडर हैं। लेकिन ट्वेंटी-20 के विश्व कुप में उनसे कोई खास बना नहीं था। वन डे के भी ह कोई बहुत नामी खिलाड़ी नहीं हैं। लेकिन कुछ भारतीय खिलाड़ियों से उनकी खटकती है। पिछले साल भारत आए थे, तो दर्शकों ने उन्हें मंकी कहके चिढ़ाया था और ह बहुत नाराज हुए थे। फिर ऑस्ट्रेलिया में उनसे हरभजन की गाली-गलौज हो गई। इन विवादो से उनका भा बढ़ गया और उन्हें ऊंचा दाम मिला। तीसरी चीज जो बिकी, ह खिलाड़ियों का देसी होना थी। और फिर ट्वेंटी-20 के श् िकप की विजेता टीम में जो भी अच्छे थे, उन्हें अच्छे दाम मिले। सिर्फ एक मैच खेलने वाले यूसुफ पठान को जयपुर ने १़९ करोड़ में ले लिया। जोगिंदर शर्मा को ट्वेंटी-20 के बाद पूछा नहीं गया था, पर उन्हें भी चेन्नई ने करीब एक करोड़ में लिया।
इसका मतलब है कि टीम के मालिकों की नजर टी और मैदान के दर्शकों पर थी। ऐसे ही खिलाड़ी अपनी टीम में चाहते थे, जो दर्शकों को खींच सके। आखिर इन खिलाड़ियों के लिए ही नहीं, इन टीमों की मिल्कियत पाने के लिए भी उनने करोड़ों रुपये बोर्ड को दिए हैं। अब टीम बन जएगी और मैच होंगे, तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा कमाई की लग जएगी। कमाई नहीं होगी, तो इंडियन प्रीमियर लीग बैठ जएगी। ैसे भी इतना पैसा धर्मादा में कोई नहीं देता। लीग में यह जो अरबों रुपये आए हैं, यह पैसे वालों का क्रिकेट में नि्वेश है। वे इससे एक-एक रुपया सूल ही नहीं करेंगे, अच्छा-खासा मुनाफा भी कमाएंगे। अब कहने की जरूरत नहीं कि इसमें मुख्य तो लाभ कमाना है, क्रिकेट खेलना नहीं। ही खेलना है, जो कमाकर दे सके। चौके-छक्के उड़ने से खेल उतेजक और दर्शनीय हो जता है। लेकिन लगातार ही होता रहे, तो भी उबाऊ हो जता है।

यह जरूर हुआ है कि इससे कल जन्मे कुछ खिलाड़ी करोड़पति हो गए हैं और लगभग सभी प्रथम श्रेणी के खिलाड़ी लखपति हो जएंगे। खिलाड़ियों की कमाई अच्छी हो जए और क्रिकेट खेलना कमाऊ हो जए, तो ज्यादा से ज्यादा लड़के खेलने को आएंगे। खूब होड़ होगी, तो इससे मानना चाहिए कि खेल भी सुधरेगा। लेकिन दो बातें और समङा लेना चाहिए कि खूब पैसा मिले, तो हर कोई सचिन तेंदुलकर नहीं हो जता। अब तक एक भी उदाहरण नहीं है कि पैसे ने महान प्रतिभा पैदा की हो। दूसरी बात कि होड़ किसके लिए? अगर ह पैसे, सुख-सुविधा और ग्लैमर के लिए है, तो क्रिकेट नहीं सुधरेगा। अरबों रुपये आ जने से बेहतर होता, तो अब तक सारे चैंपियन अमेरिकी होते। धंधा और पैसा बुरी चीज नहीं है। लेकिन सिर्फ धन धन्य नहीं करता।(शब्दार्थ)

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