Saturday, March 29, 2008

घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।

प्रभाष जोशी
घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।
हमने तो पढ़ी नहीं तुमने पढ़ी हो तो बताओ साधो। नहीं पढ़ी ना। हम जानते थे। हजार पत्रों की उस महापोथी को तुम जैसे रमते राम बांचें भी तो कैसे। न तुम्हें भाजपाइयों को बताना है कि तुम लालकृष्ण आडवाणी का कितना आदर करते हो न तुम्हें अगली हो सकने वाली सरकार में अपनी गोटी अभी से जमा कर रखनी है। तुम्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वालों को भी दिखाना नहीं है कि तुम लालकृष्ण आडवाणी पर नजर रखे हुए हो और जब भी वे संघ की खींची गई लकीर से इधर-उधर होंगे तो घंटी बजाकर सावधान कर दोगे। जानना-बताना भी नहीं है कि जिन घटनाओं को तुमने खुद देखा और जाना है उनको लालकृष्ण आडवाणी ने कैसे देखा और बताया है और उसमें सच क्या और झूठ कितना है। तुम्हें न अखबार में लिखना है न टीवी पर बताना है कि तुम अपनी धूनी छोड़कर लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा पढ़ो। तुमने ठीक ही किया साधो जो हल्ले में नहीं आए और ‘आसन मार डिंब धरी’ बैठे रहे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री होने की हवा चलाई जा रही थी तो उनकी कविता को आगे-आगे धजा की तरह उड़ाया जाता था। कविता की पोथी छपी तो खुद प्रधानमंत्री नरसिंह राव उसका विमोचन करने आए। ऐसा समारोह मना कि जैसे कविता ही वह पालकी होगी जो अटल जी को सिंहासन पर जा बैठाएगी। फिर कविता तो नहीं प्रमोद महाजन की दलाली ने जरूर चंद्रबाबू नायडू को पटा लिया और अटल जी तेरह दिन की नामुराद सरकार की भभूत झाड़कर असल के प्रधानमंत्री हो गए। तब देखते-देखते उनकी कविता दिन की सबसे चटकीली ललाई और नशे में लपेट लेने वाली धुन हो गई। पॉप गायिका से लेकर संगीत सम्राट तक उनकी कविता गाने लगे। भारत में कोई कवि नहीं रहा जो अटल कवि के सामने टिक सके। फिर चुनाव हुए और अटल जी सिंहासन से पटिये पर आ गए। प्रमोद महाजन ने उन्हें सहस्र चंद्र दर्शन जरूर करवाए। लेकिन अब और कोई तो छोड़िए भाजपाई दरबारी लाल भी कभी अटल जी की कोई पंक्ति नहीं सुनाता।
ऐसा राजनेता के लिखने का होता है साधो। हमने तो लिखा भी नहीं। लिखना तो जानते ही नहीं। कहते हैं बस। तुम हमारे कहे को कहते फिरते हो तो लोग हमीं को आकर बताते हैं कि ऐसा हमने कहा है। हम कहते हैं कि ठीक है कहा होगा। लेकिन कोई बता रहा था साधो कि लालकृष्ण आडवाणी तो बोलते हुए भी सावधान रहते हैं कि उनका बोला लिखा जाएगा। जो बोलने में इतना सचेत रहता है साधो, वह लिखने में कितनी चतुराई बरतता होगा। उनकी आत्मकथा के हजार पन्ने पढ़ लोगे तो समझ आ जाएगा। तुम कहोगे कि आप तो कहते हो कि हमन को होशियारी क्या और हमें लालकृष्ण आडवाणी की चतुराई पकड़ने में लगाते हो। नहीं साधो, ऐसा करने को हम क्यों कर कहेंगे। हम तो तुम्हें भी इश्क मस्ताना ही मानते हैं। होशियारी की जासूसी तो पंडित और मौलाना पर छोड़ देनी चाहिए। अपनी तो फकीरी ही काम की है।
लेकिन लालकृष्ण आडवाणी को बहुत दुख है साधो कि उनने बुलाया था फिर भी सोनिया गांधी उनकी आत्मकथा के विमोचन पर नहीं आई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी बुलाया था पर उनसे भी ऐसे संबंध नहीं हैं कि वे आते। पूरी कांग्रेस पार्टी में से कोई भी नहीं आया। अटल की कविताओं के संग्रह का तो विमोचन ही कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने किया था और कांग्रेसी मंत्री सांसद सब आए थे। थी तो वह कविता की पोथी लेकिन अवसर तो राजनैतिक ही था। ऐसा लगता था कि अटल जी प्रधानमंत्री हो जाएं तो कांग्रेस वालों को कोई ऐतराज नहीं होगा। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी से तो कांग्रेस ने वह शिष्टाचार भी नहीं बरता जो विपक्ष के नेता से किया जाना चाहिए। जैसा लोकसभा में आडवाणी करवाते हैं वैसा ही बहिष्कार उनकी आत्मकथा के विमोचन का कांग्रेस ने कर दिया।
अखबार वाले कहते हैं साधो! लालकृष्ण आडवाणी ने भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से अपनी आत्मकथा उतनी विमोचित नहीं करवाई जितने अपने संभावित प्रधानमंत्रित्व का शुभारंभ। कलाम को तो निश्चित ही कोई एतराज नहीं था। कांग्रेस को था। लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री होने की सीढ़ी पर चढ़ाने में सोनिया गांधी क्यों हथेली लगाएं। उनका अपना बेटा राहुल गांधी नहीं है क्या! फिर आडवाणी राजनीति बोते हैं तो सद्भावना कैसे काट लेंगे। उदारता खुंदक में कहां मिलती है साधो!

7 comments:

Anonymous said...

आदरणीय भाई साहब आपने पूरा का पूरा प्रभाषजी का आर्टिकल तो कॉपी पेस्ट कर दिया है लेकिन अगर तहलका हिंदी का जिक्र भी कर देते तो ज्यादा अच्छा होता जहां का ये स्थाई स्तंभ है। शायद आपको औघट घाट स्तंभ के बारे में नहीं पता होगा। इसे स्वयं प्रभाषजी ने तहलका हिंदी के लिए सुझाया है।

गूगल मित्र said...

आप सही हैं. में अपना अपराध स्वीकारता हूँ. गलती से चूक हुई. वैसे प्रभाष जी का लिखा मेरे बाप की संपत्ति है, कम से कम यही मान कर चलता हूँ. इससे अपराध कम नहीं हो जाता मागत कुतर्क ही सही, तर्क तो है ही....

Anonymous said...

churha ji, you have given om thanvi a valid cause to run down Alok Tomar....chlo alok ji khud nipat lenge...

Anonymous said...

har baat mein bechaare thanvee ko kyon le aate hain? beemaaron ko jyaada naheen satana chaahiye.

Anonymous said...

ye ambreesh ki kartoot hai. vo aur alok tomar mile hue hain

Anonymous said...

kameeno, lekh padho. sona kahan milaa, iskee bajay use gahna maan kar izzat karo. vaise prabhash ji naa likhen to janasatta ka hoga kyaa?????????????

Anonymous said...

केवल लेख ही नहीं यहां तो प्रभाष जी का फोटो भी tehelkahindi.com का ही है. मगर भगत भाई ने भी ठीक ही लिखा है.