Sunday, March 16, 2008

इस साल नहीं होगी मानसरोवर यात्रा?



आलोक तोमर


नेपाल के इरादे भारत के साथ रिश्तों को लेकर बहुत नेक नजर नहीं आते।सरकार में शामिल माओवादियों के दबाव में नेपाल ने पहले चीन से रेल संपर्क जोड़ा और अब तिब्बती बगावत के नाम पर एवरेस्ट का नेपाल से जाने वाला रास्ता भी पर्वतारोहियों के लिए बंद कर दिया गया है। खबर है कि इस बार चीन कैलाश मानसरोवर यात्रा भी नहीं होने देगा।हिंदू तीर्थ कैलाश मानसरोवर चीन में आता है और इसका सबसे सहज रास्ता नेपाल होकर ही जाता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नेपाल में स्थित भारतीय दूतावास को संकेत दे दिए गए हैं कि तीर्थ यात्री अगर भारतीय आधार शिविर से रवाना भी हो जाए तो उन्हें नेपाल में ही रोक लिया जाए। अब तक हिंदू राष्ट्र की मान्यता रखने वाले नेपाल ने इससे पहले यह कदम इससे पहले कभी नहीं उठाया। हर साल पंद्रह हजार से ज्यादा तीर्थ यात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं और इसी साल भारत सरकार ने हज यात्रियों की तरह उन्हें अनुदान देने की घोषणा की थी।चीन ने तिब्बत पर कब्जे को लेकर भारत सरकार की तकनीकी सहमति वाजपेयी सरकार के दौरान ही ले ली थी। इसी आधार पर चीन ने अरूणांचल प्रदेश से अपना कब्जा छोड़ा था और नाथुला पास का रास्ता भारत-चीन व्यापार के लिए खोलने की अनुमति दी थी। इस फैसले से भारत में बसे लाखों तिब्बती शरणार्थी नाराज हैं और उन्होंने अपने धर्म गुरू दलाईलामा की बात मानने से भी इनकार कर दिया है। तिब्बत में चीनी दमन का दौर जारी है और यह लिखने तक सोलह लोग जान गवां चुके हैं।चीन ने घोषित कर दिया है कि उनका देश तिब्बत में हो रही अशांति को लोक संग्राम करार दिया है और चेतावनी दी है कि इसमें शामिल किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही माना जाएगा और सबसे कड़ी सजा दी जाएगी। भारतीय विदेश मंत्रालय इस मंत्रालय अब तक कुछ भी कहने से बच रहा है लेकिन चिंता का हाल यह है कि इतवार को भी शास्त्री भवन में विदेश मंत्रालय की चीन युनिट का कार्यालय खुला रहा। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी कल संसद में इस संबंध में कोई बयान दे सकते हैं। उन्हें इस बात का भी जबाव देना होगा कि अमेरिका भारत और चीन के इस मामले में दखल क्यों दे रहा है?

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