बीच बहस में- वंदेमातरम्
नीरज दीवान
वंदेमातरम् पर हुई राजनीति पर बहुत से आलेख पिछले दिनों लिखे गए. यहां कोशिश की गई कि इतिहास की तारीख़ों पर नज़र डालते हुए कुछ संशय आपके सामने रखूं.
१८७६ में इस गीत की रचना हुई. बंकिमचंद्र चटर्जी ने इसे लिखा उसके छह साल बाद यानी १८८२ में आनंदमठ प्रकाशित हुई. १८७६ से १९७६ तक के सौ साल और उसके बाद १२५ साल २००१ मे पूरे हुए.
१८९६ में कोलकाता अधिवेशन में गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया. इस लिहाज़ से १९९६ में इसके १०० साल पूरे हुए.
१९०५ (अथवा १९०६) में सात सितम्बर को बनारस में हुए कॉग्रेस अधिवेशन में इसे टैगोर की भतीजी सरला देवी चौधरानी ने तत्कालीन अध्यक्ष लोकमान्य तिलक के अनुरोध पर गाया. कहा जाता है कि इसी अधिवेशन में कॉग्रेस ने इसे अपना आधिकारिक गीत अंगीकार किया.
इतिहासकार सुमीत सरकार ने सवाल उठाया है कि कॉग्रेस के अधिवेशन अमूमन दिसम्बर में होते रहे हैं. मेरा (ब्लॉगर) स्वयं का प्रेक्षण रहा है कि कॉग्रेस का सालाना अधिवेशन हमेशा दिसम्बर में होता आया है. फिर सितम्बर में अंगीकार करने के सवाल पर सफाई अब कॉग्रेस को देनी है.
आज ही मैंने अखिल भारतीय कॉग्रेस कमेटी की आधिकारिक साइट पर जाकर देखा तो हैरानगी हुई कि जिस अधिवेशन की बात कॉग्रेस सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अर्जुन सिंह यह बताते हुए कह रहे हैं कि इसी साल (२००६) में इसके सौ साल पूरे हुए तो लगा कि या तो सरकार के तथ्य सही नहीं है या फिर साइट झूठ बोल रही है. साइट के मुताबिक़ बनारस अधिवेशन १९०५ में हुआ था. यानी १०० साल तो २००५ में ही हो चुके थे.
उससे भी बड़ी हैरानगी तब होती है जब मानव संसाधन मंत्रालय बिना इतिहासकारों की राय लिए या दस्तावेजी प्रमाण हासिल किए एक फ़रमान जारी कर दे और संघ परिवार उसका स्वामिभक्ति से पालन करने लग जाए. इससे पहले सौ या सवा सौ सालों पर किसी सरकार (कॉग्रेस, एनडीए और यूपीए) ने कोई उत्सव नहीं मनाया.
Monday, March 10, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment