आलोक तोमर
दो साल, चार महीने और पाँच दिन। इतना वक्त लगा दिल्ली पुलिस को एक चार्जशीट दाखिल करने में। वो भी ऐसे मामले मैं जिसमें वह अभियुक्त की जमानत रद्द करवाने के लिए हाई कोर्ट में एक साल से अर्जी लगाये हुए है और वहां पुलिस का तर्क है कि अभियुक्त अगर आजाद रहा तो देश और न्याय के लिए भारी खतरा है।
ये मामला है 2006 के फरवरी महीने का जब एक संपादक पर इल्जाम लगाया गया था कि उसने वे डेनिश कार्टून भारत में छाप कर भारत में सांप्रदायिक अशांति फैलाने की कोशिश की है जिन्हें ले कर पूरी दुनिया के कई हिस्सों में फतवे जारी किए जा रहे है और खास तौर पर डेनमार्क में तो कार्टून छापने वाले संपादक को भूमिगत होना पड़ा है। तब पुलिस को इतनी फ़िक्र और इतनी जल्दी थी कि इस 'अभियुक्त संपादक' को बिना उचित अदालत में ले जाए, सीधे तिहाड़ जेल भेज दिया गया-इस आदेश के साथ कि इसे उस उच्च सुरक्षा बैरक में बंद करो जहाँ कश्मीरी आतंकवादी आदि बंद होते हैं। बारह दिन जेल में रहने के बाद जमानत हुई और इस बात का इंतजार भी कि कब अभियोग लगेंगे और कब मुक़दमा शुरू होगा। इस बीच संसार के लगभग हर देश के पत्रकार संगठनो ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को इंटरनेट पर और सीधे भी अपीलें भेजी। सर्वोदयी प्रभाष जोशी से ले कर वामपंथी कमलेश्वर तक अदालत में हाजिर हुए और उन्होने संपादक की बेगुनाही और धर्मनिरपेक्षता की कसमें खाई और संबंधित मजिस्ट्रेट ने जमानत के आदेश में ही पुलिस के आरोप की धज्जियां उड़ा दी। लेकिन दिल्ली की पुलिस कसम खाए बैठी थी कि संसार के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी में अभिव्यक्ति की आजादी का जो संवैधानिक मूल अधिकार है, उसे अपने बूटो ंके नीचे रौंद दिया जाय। दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी गृह मंत्री शिवराज पाटिल से इस गिरफ्तारी ंके खिलाफ अपील कर रहे थे तो झारखंड ंके उन्ही की पार्टी ंके एक नेता संपादक का सिर कलम करने वाले को करोड़ो रुपए का इनाम देने का ऐलान कर रहा था।
इस मामले में सवा दो साल में 17 जांच अधिकारी बदले गए, तीन थानेदार और तीन डीसीपी बदल गए लेकिन चार्ज शीट को न पेश होना था न वो हुई। हार कर कर अभियुक्त पत्रकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से ही कहा कि मी लार्ड, अगर इल्जाम है तो मुक़दमा चलवाइए या फिर एफ़ आई आर को ही खारिज कीजिए। अदालत ने पुलिस से पूछा औए एक थकी हारी एफ़ आई आर 5 जून को पेश कर दी गयी। अब मुक़दमा चलेगा, तारीखें पड़ेंगी और पत्रकार लिखने की वजाय अदालत में मुजरिम बना रहेगा।
गिरफ्तारी के वक्त वहुत खबरें बनी थी, टीवी चेनलों के ओ वी वैन लगे थे। बहुत सारे संपादक टीवी पर प्रेस की आजादी का राग गा रहे थे तो एक तो ऐसे थे जो संपादक को ही नालायक करार दे रहे थे। इसके बाद वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर गए होंगे और अपने होम थियेटर पर कोई फिरंगी फिल्म देखी होगी। अपनी अपनी बुध्दि, अपने अपने सरोकार। कोई ये नहीं देख पा रहा था कि तत्कालीन पुलिस आयुक्त की ख़ुद इस मामले में क्या दिलचस्पी थी, यह भी नहीं कि इस आयुक्त के के पॉल की धर्मं पत्नी ज़िंदगी भर कांग्रेस के एक ठिगने महाबली मंत्री के साथ-तू जहाँ जहाँ रहेगा, मेरा साया साथ होगा-की अदा में काम करती रहीं थी, आज भी कर रही हैं। शिखंडी की तरह आचरण कर रहे गृह मंत्री को आगे रख कर चलाया गया था ये हथियार।
के के पॉल का गुस्सा कितना निजी था ये इसी से ज़ाहिर है कि एक और मामले में, इसी पत्रकार को गिरफ्तार करने के लिए, कुछ ही महीने बाद पुलिस टीम हवाई अड्डे पर जहाज़ के नीचे खड़ी कर दी और पत्रकार को उठवा लिया। इस बार गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने की थी। ये सेल आतंकवादियों और माफिया से निपटने के लिए वनाया गया है। फिर तिहाड़ जेल। इस बार संगत सांसद पप्पू यादव से ले कर नवी वार रूम लीक केस के अभियुक्तों की मिली। फिर जमानत हुई और ये लो, मामला अदालत की पहली पेशी में,दस- पन्द्रह मिनट में खारिज। कार्टून वाले मामले में चार्ज शीट तब तक भी नहीं आयी थी।
इस बीच के के पॉल को संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य बना दिया गया। एक लापता इन्स्पेटर से जान का खतरा बहाना बना और पहले उन्हें ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा मिली और फिर जेड प्लस श्रेणी की। अपने देश में भूतपूर्व पुलिस आयुक्त होना कितने खतरे की बात है? लापता इंस्पेक्टर वापस भी आ गया, उसे धमकी के आरोप में गिरफ्तार भी नहीं किया गया। मगर के के पौल की सुरक्षा अब भी कायम है। बेटा वकालत कर रहा है और पत्नी एनजीओ भी चलाती हैं और देश ंके विदेश मंत्री की सलाहकार भी हैं। यह जोड़ा इतना करामाती है कि एनजीओ के लिए हरियाणा सरकार से करोड़ो की जमीन मिल गई और पत्नी ंके नाम से गुड़गांव ंके महंगे बीएलएफ ईलाके में एक करोड़ रुपए की लागत से और यह सिर्फ मकान बनाने की लागत है उनकी एक तीन मंजीला कोठी भी तैयार हो गयी। इस कोठी की जानकारी बिल्डर एमएल आहुजा की बेबसाईट-www.mlahujaassociates.com से मिल सकती है। लेकिन लोग तरक्की करे और बीबी के नाम से उसके जीते जी ताजमहल बनवाए, खुद को शाहजहां साबित करें, अपना क्या जाता है।
ये में अपनी कहानी लिख रहा हूँ। गुणों की खान नहीं हूँ इस लिए न्यायोचित रूप से निरासक्त नहीं रह पाया तो न्याय और आप क्षमा करें। न मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ और न महात्मा गांधी, फिर भी चार अक्षर बेच कर रोजी चलाता हूँ। मेंरा एक सवाल है आप सब से और अपने आप से। जिस देश में एक अफसर की सनक अभिवक्ति की आजादी पर भी भरी पड़ जाए, जिस मामले में रपट लिखवाने वाले से ले कर सारे गवाह पुलिस वाले हों, जिसकी पड़ताल, 17 जांच अधिकारी करें और फिर भी चार्ज शीट आने में सालों लग जायें, जिसमें एक भी नया सबूत नहीं हो-सिवा एक छपी हुई पत्रिका के-ऐसे मामले में आज में कटघरे में हूँ, कल आप भी हो सकते हैं।
मित्रो, ग़लत फहमी मत पालिए। में न मुकदमा लड़ने ंके लिए चंदा मांग रहा हूँ और न जुलूस निकालने के लिए भीड़। न्याय या दंड भी मुझे अदालत से मिलेगा। मेरा सवाल सिर्फ़ यह है कि जब एक साथी पूरी व्यवस्था से निरस्त्र या ज्यादा से ज्यादा काठ की तलवारों के साथ लड़ता है तो आप सिर्फ़ तमाशा क्यों देखते हैं? समर शेष है, नही पाप का भागी केवल व्याध / जो तटस्थ है, समय लिखेगा, उनका भी अपराध।
अब चाहें तो वो लेख (मूल हिन्दी के इंग्लिश अनुवाद का हिन्दी अनुवाद ) पढ़ लें जिस पर सारा बवाल कटा है---
'पिछले दिनों इस्लाम धर्म की स्थापना करने वाले पवित्र हजरत मोहम्मद के एक कार्टून पर, जो डेनमार्क में छपा है, काफ़ी प्रदर्शन हुए, और अब भी चल रहे हैं। हजरत मोहम्मद के कार्टून छापने वाली पत्रिका वाही है जिसने च्रिस्ट के कार्टून छपने से इनकार कर दिया था। अब जॉर्ज बुश भी कहते हैं कि मुस्लिमों में परिहास बोध नहीं होता और इसी से उनके धर्म के मूल आधार का पता चलता है। अमेरिका की इन मूर्खता भरी टिप्पणियों से आतिशबाजी उठनी स्वाभाविक हैं। आप किसी भी धर्म की मूल आधार को चुनौती दे कर बच नहीं सकते।
माना कि किसी भी धर्मं की महानता का पैमाना उसकी सहिष्णुता है और यह तथ्य भी कि वह अपने पर की गयी टिप्पणियों को कितना सहन कर सकता है। किंतु अगर कोई धर्म अगर अपने पर मजाक का बुरा मानता हो तो उसे अपने पथ का संधान करने के लिए ख़ुद छोड़ देना चाहिए।'
कुछ ग़लत लिखा था?
Sunday, June 29, 2008
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7 comments:
आलोक जी आपने बिल्कुल सच कहा है। और ऐसा नहीं है कि आप अकेले हैं, आपके लाखों मुरीद (पाठक) आपके हमेशा साथ हैं।
GREAT AND EXPLAINING THE SORRY STATE OF AFFAIRS
alok ji ap akele nahi hai.anyay ke khilaf lad rahe hai.isliye ap ke sath pura patrakar samaj hai.aur mai visheskar tan man aur dhan se apke sath hoo.koi bhi seva ap mujhe se lenge to mai apne apko soubhagysali manuga. apka dhirendra pratap singh durgvanshi
abhivykti ki svtantra ka hanan karne vale kisi bhi vyakti ya system ko chahe vah koi bhi ho maf nahi kiya ja sakta.
abhivykti ki svtantra ka hanan karne vale kisi bhi vyakti ya system ko chahe vah koi bhi ho maf nahi kiya ja sakta.
बड़े भाई,
आप इस लड़ाई में कतई अकेले नहीं हो. आपका पाठक संसार बहुत लंबा है. इस लड़ाई में सत्य (आपकी) की ही जीत होगी. देर भले ही हो. भाई मुझे आपका नंबर चाहिए. दिल्ली में तो था. जब से चंडीगढ़ आया हूं तब से नहीं है. संभव हो तो मेरे ब्लाग में डाल दीजिएगा.
मुकुंद
आलोक जी सच थकता जरूर है लकिन कभी हारता नहीं है. हमारी पुलिस तो कारनामो के लिये मशहूर है. सच के साथ हमेसा इश्वर होता है. नितिन सबरंगी. मेरठ.
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