Thursday, April 3, 2008

उट्ठो ज्ञानी खेत संभालो

प्रभाष जोशी
घाटे पानी सब भरे औघट भरे न कोय।
औघट घाट कबीर का भरे सो निर्मल होय।।
साधो, क्या तुम मानोगे कि मनमोहन सिंह का सपना भारत और इंडिया की दूरी खत्म करना है? तुम साधुओं को किसी पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए। फिर ये तो साक्षात प्रधानमंत्री हैं। सौ करोड़ से ज्यादा लोगों का यह देस उन पर भरोसा करता है। यह बात अलग है कि वह खुद अपने आदमी नहीं हैं। पहले राजीव गांधी की तरफ देख कर काम करते थे। फिर नरसिंहा राव ने उन पर भरोसा किया। और राव साब भले ही सोनिया गांधी को फूटी आंखों नहीं भाते होंगे, सोनियाजी का मौका आया तो उनने भी मनमोहन सिंह पर ही भरोसा किया। बल्कि नरसिंहा राव से भी ज्यादा किया। उनने तो इन्हें वित्तमंत्री बनाया था। सोनियाजी ने तो प्रधानमंत्री ही बना दिया। ऐसे भरोसेमंद आदमी हैं। कोई चीज़ माथे में नहीं जाती। कभी पर नहीं उगते। जो कहा जाता है अपना तन, मन, धन लगाकर वही करते हैं। जिन पर राजनीति के बेबिस्वासी लोग इतना भरोसा करते हैं उनको हम साधु लोग शक की नज़र से क्यों देखें?
मनमोहन सिंह पंजाब के जिस गांव में जन्में थे वह आज़ादी के पहले का गांव था और अब पाकिस्तान में रह गया है। वह गांव ही था तो साफ-सफाई, पीने का पानी, बिजली, पाठशाला आदि कुछ भी वहां नहीं था। धूल धक्कड़, गंदगी और फटेहाली ही थी। उन्हें पढ़ने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता था। मनमोहन सिंह को उस गांव की बहुत याद आती है। तभी से उनको धुन लगी हुई है कि गांव और शहर की दूरी पट जाए और गांव वाला किसान देख सके कि उसका जीवन स्तर शहर वाले से कमतर नहीं है।
यानी साधो, मनमोहन सिंह गांव को मुंबई और मुंबई को शंघाई बनाना चाहते हैं। जैसा अमेरिका वालों ने गांवों को शहर बनाकर गांवो का नामो निशान नहीं छोड़ा है और खेती को कारखाना बना दिया है वैसा ही मनमोहन सिंह का सपना है। अब दिक्कत यह हो रही है कि सत्रह साल पहले उनने जो आर्थिक नीतियां चलाई थी वो फल-फूल कर गांवो को शहर बनाने में लगी हैं। जैसे ऑमलेट को बनाने के लिए अंडों को तोड़ना पड़ता है वैसे ही गांव को खत्म किए बिना गांववालों को शहर की सुविधाएं नहीं दी जा सकती। इंडिया और भारत का संघर्ष खत्म करने के लिए भारत को खत्म करना पड़ेगा। इंडिया तभी बनेगा। उसमें गांव वाले नहीं रहेंगे। शहरी ही होंगे जो अपने विमान और हेलीकॉप्टर से खेती देखने जाएंगे और शाम तक लौट आएंगे। कभी मौज के लिए रुकना हुआ तो रेंच हाउस होंगे ही।

अपना वही सपना पूरा करने के लिए मनमोहन सिंह सत्रह साल से खेती, गांव, गंदगी, काहिली सब खत्म करने में लगे हुए हैं। उनकी पूरी तैयारी है कि गांव वाले खेती छोड़ कर शहर में उद्योग चलाएं नहीं तो बाहर से आने वालों की सेवा करें। खेती अंबानियों, मित्तलों, टाटाओं और बिरलाओं के करने का काम रह जाए। जैसे वे कारखाना लगा कर लाभ कमाते हैं वैसे ही खेती करके कमाएंगे। खेती किसान का नहीं कॉर्पोरेट का काम है। तभी तो आज के आधे से ज्यादा किसान खेती छोड़ने के लिए तैयार किए जा रहे हैं। अभी कालाहांडी का किसान साल भर हाड़तोड़ मेहनत करके सिर्फ तीन हज़ार रूपए पाता है। अंबानी और शेयर बाज़ार के बेटे बिना कुछ किए ही रातो रात करोड़ों कमा लेते हैं। आज खेती में बड़ा घाटा है। अंबानी का हाथ लगते ही वह सोना उगलने लगेगी। साधो, उट्ठो अपना खेत संभालो।
तहलका में प्रभाष जी का लोकप्रिय स्तम्भ

2 comments:

Arun Arora said...

अच्छा विचार है जी सरकार का येह,गरीबो को खत्म करने से ही गरीबी खतम होगी जी..लेफ़्ट की चली तो यहा रहने के लिये निवासी भी चीन से मंगालेगे जी..:)

Anonymous said...

प्रभाष जी आधुनिक समय के कबीर हैं. इश्वर उन्हें मेरी भी आयु दे दे.उनके अलावा हिन्दी में कोई और संपादक नज़र ही नहीं आता इतनी सादगी से इतनी मार ....कमाल है...