tag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post6823488030683334566..comments2019-04-27T17:02:31.908+05:30Comments on janasatta: हॉकी के बंटाधार के लिए कौन जिम्मेदार?गूगल मित्रhttp://www.blogger.com/profile/17719251231605581199noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-23914123828377315352010-04-26T07:08:28.512+05:302010-04-26T07:08:28.512+05:30Greets dudes!
I just wanted to say hi :)Greets dudes!<br /><br />I just wanted to say hi :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-1559747388191245662008-03-15T20:16:00.000+05:302008-03-15T20:16:00.000+05:30आलोक जी ने जनसत्ता से हटने के बाद चार किताबें, पाँ...आलोक जी ने जनसत्ता से हटने के बाद चार किताबें, पाँच टी वी सीरियल और एक फ़िल्म लिखी है. अपनी कलम की दम पर ही वे आठ लाख कि कार में चलते हैं, अपना मकान दक्षिण दिल्ली में बनाया है, ओम जी की तरह अवैध निर्माण वाले फ्लैट में नहीं रहते, और उनकी वेबसाईट के करोड़ों पाठक हैं.. बस उनके पास होम थिएटर नहीं है और वे फ्रेंक सिनात्रा की बजाय कारन जौहर और महेश भट्ट की फिल्में पसंद करते हैं. पाखंड नहीं करने वाले एक पत्रकार पर कमेन्ट करने वाला निरक्षर ही होगा.Bhagat Rawathttps://www.blogger.com/profile/04032563787384309642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-44965648629527507662008-03-15T20:02:00.000+05:302008-03-15T20:02:00.000+05:30ajit, aalok tomar ke likhe par swal uthaane ke pah...ajit, aalok tomar ke likhe par swal uthaane ke pahle thaanvee jee se hee pooch liya hota. vaise kitne padhe likhe hain aapAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-26257864686670703992008-03-15T19:59:00.000+05:302008-03-15T19:59:00.000+05:30मेर्व 'गुमनाम' मित्र अजित जी आप तो सावित्री से भी...मेर्व 'गुमनाम' मित्र अजित जी<BR/> आप तो सावित्री से भी बड़े पतिव्रताधारी निकले. आपको क्या लगता है की जनसत्ता कोई दूकान है जो किसी जमूरे के नहीं बकने से बंद हो जायेगी? आप इसे पढ़ रहे हैं इसी से जाहिर है कि आ प भी, जैसा आपने ख़ुद कहा, आप ओम थानवी विरोधी हैं. में तो थानवी जी का बहुत आदर करता हूँ , उनकी प्रतिभा को कोई बड़ा मंच मिलना छाहिये था-जैसे वीर अर्जुन या पंजाब केसरी,और जनसत्ता के कागजी संसकरण के संपादक वे रहें या आप बन जाएं इस से मुझे या किसी भी पाठक को क्या असर पड़ता है? प्रभाष जी का इस अभियान से कोई सम्बन्ध था या है, ये आप से कौन कह गया.? मेरा रिश्ता प्रभाष जी से पिता पुत्र का है और वैसा नहीं जैसे आपने अचानक ॐ जी को अपना बाप बना लिया है. थानवी जी ऐसी नालायक औलाद पा कर लज्जित ही हो रहे होंगे जो गुमनाम भी है और हिन्दी भी नहीं लिख पाती. मेरे लेखों को सिर्फ़ थका हुआ कहने के लिए धन्यवाद वरना, तीन वेचारे छात्रिन का दिल टूट जाता जो गरीब मेरे लिखे पर पी एच डी के लिए शोध कर रहे हैं. आपको शुभ कामना, मगर बडों के बीच आने वाले बच्चों का भविष्य उज्जवल नहीं होता.<BR/><BR/>आपका<BR/>आलोक तोमरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-59495587782565414602008-03-15T16:16:00.001+05:302008-03-15T16:16:00.001+05:30alok ji aap ki dukan chali nahi ab band ker d...alok ji <BR/><BR/>aap ki dukan chali nahi ab band ker de,aap ke thake hue<BR/>lekho ke alava kuch nahi hai.prabhash ji ne bhi isse koi<BR/>sambandh hone se inkar ker diya hai.khali thanvi ji kuch virodhi <BR/>ise dekh rahe hai.<BR/><BR/>ajitAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-77249134000763177562008-03-15T16:16:00.000+05:302008-03-15T16:16:00.000+05:30alok ji aap ki dukan chali nahi ab band ker d...alok ji <BR/><BR/>aap ki dukan chali nahi ab band ker de,aap ke thake hue<BR/>lekho ke alava kuch nahi hai.prabhash ji ne bhi isse koi<BR/>sambandh hone se inkar ker diya hai.khali thanvi ji kuch virodhi <BR/>ise dekh rahe hai.<BR/><BR/>ajitAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-33818803737155411922008-03-15T16:05:00.000+05:302008-03-15T16:05:00.000+05:30kishan patnayak ki virasat perkabja karne v...kishan patnayak ki virasat per<BR/>kabja karne vale pakhadiyo me raj kishore bhi hai,samyek varta me aur bhi pakhandi hai.sab badi badi bate karenge chote chote raiket chalayenge.<BR/>surendra mohanAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-42151175072363990262008-03-13T20:42:00.000+05:302008-03-13T20:42:00.000+05:30आईपीएल में खिलाड़ी की बोली लग रही है। धक्कम पेल मच...आईपीएल में खिलाड़ी की बोली लग रही है। धक्कम पेल मची है टीम में घुसने की। अब तो ये भी नहीं समझ आएगा की किसकी तारीफ करें किसको गरियाएं। एक ही टीम में अपना फेवरेट धोनी, हरभजन भी खेलेगा और उसी में परम दुश्मन साइमंड और पोंटिंग जैसे भी। फिर भी करोड़ों में उन्हें हथियाने की लहर है। अभी एक और निलामी होनी है। यानी चहुंओर “जय क्रिकेट जय क्रिकेटवान” का नारा बुलंद है। यहां फिर भी थोड़ी बहुत पारदर्शिता बची हुई है। हर साल बोर्ड के अध्यक्ष का चुनाव होता है। अध्यक्ष भी अमूमन बदलते रहे हैं। हालांकि मठाधीशी की कोशिशें डालमिया जैसे लोग करते रहे हैं। पर कुल मिलाकर क्रिकेट में बाकी खेलों जितना बपौती सिस्टम नहीं है।<BR/>अब देखिए पावर हाउस ऑफ हॉकी के देश में हॉकी की दुर्दशा को। यहां एक आदमी पिछले दशक भर से कब्जियाए बैठा हुआ है। और अस्सी सालों में पहली दफा हॉकी टीम ओलंपिक में नज़र नहीं आएगी। दुनिया आती रहे जाती रहे हॉकी इनके पैरों की वधू है। तमाम लोगों को शरम हया है। वो इस दुर्दिन के लिए छमा याचना करने को तैयार हैं। कोच ने इस्तीफा दे दिया है लेकिन ये नहीं छोड़ेंगे। रसातल में पहुंचाने के बाद भी लगता है भारतीय हॉकी को अभी इससे भी बुरा कुछ देखना है। आतंकवाद से निपटने की तर्ज हॉकी जैसे खेल पर कैसे फिट हो सकती है। क्या इतना जानने का हक किसी को नहीं हैं। इस देश में हर आदमी जवाबदेह है। आखिर राष्ट्रीय खेल की इस दुर्दशा पर पूरे खेल को अपनी पैरों की दासी बनाए रखने वाले इस शख्स से जवाबलतब क्यों नहीं हो रहा है?<BR/>चुनावी बरसात में बड़ी बड़ी टर्र टर्र करने वाले नेता किसी न किसी खेल संघ पर दशकों से कब्जा जमाए बैठे हैं। और खेलों की हालत लगातार रसातलगामी है। कोई जवाबदेह क्यों नहीं है? यहां कोई पारदर्शिता क्यों नहीं है? क्या हॉकी को मौत देकर ही मानोगे? राष्ट्रीय खेल का निशान मिटाकर ही दम लोगे? मेजर की आत्मा कराह रही है। थोड़ी शर्म बची हो तो ईमानदार कोशिश कर लो। वरना अस्सी सालों में जो नही हुआ वो अब हो रहा है और आगे इससे भी बुरा होगा।<BR/>अतुल चौरसियाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-67712305344063240122008-03-13T08:39:00.000+05:302008-03-13T08:39:00.000+05:30gazab hai abhi tak rajkishore gandi gali ke liye b...gazab hai abhi tak rajkishore gandi gali ke liye badnam tha ab sahitya ki chori me bhi aage badh gaya hai.<BR/>sanghi logo ko gali dene vale rajkishore jaise samjvadi ke bare me bhi kuch bolenge.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-68499546058267992362008-03-12T20:11:00.000+05:302008-03-12T20:11:00.000+05:30यह चर्चित कविता स्व. रघुवीर सहाय ने १९५२ में लिखी ...यह चर्चित कविता स्व. रघुवीर सहाय ने १९५२ में लिखी थी .<BR/><BR/><BR/>पढ़िए गीता<BR/>बनिए सीता<BR/>फिर इन सबमें लगा पलीता<BR/>किसी मूर्ख की हो परिणीता<BR/>निज घरबार बसाइये .<BR/><BR/>होंय कंटीली<BR/>आंखें गीली<BR/>लकड़ी सीली , तबियत ढीली<BR/>घर की सबसे बड़ी पतीली<BR/>भरकर भात पसाइये .<BR/><BR/>राज किशोर नामक महान समाजवादी की ये रचना पढ़ें और सीखें साहित्यिक चोरी की कला <BR/>सीता है या गीता है<BR/><BR/>जीवन भर की मीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>उसका दर्ज़ा सर्वोपरि<BR/><BR/>आखिर वह परिणीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>मीठा से मीठा रिश्ता<BR/><BR/>उसके आगे तीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>तृष्णा उसे सताए क्यों<BR/><BR/>जो इस रस को पीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>कइयों का कहना है यह<BR/><BR/>हिरन भेस में चीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>कहता हूं मैं प्यारे तू<BR/><BR/>अगर खरा हो जीता है<BR/><BR/> <BR/><BR/>आगे बेहतर बीतेगा<BR/><BR/>जैसा अब तक बीता है।<BR/><BR/>1952 में स्व. रघुवीर सहाय ने लिखा था - हम याद करा रहे हैं और राजकिशोर को भी जरूर याद होगा , यदि यह ‘रविवार’ वाले ही हैं तब . क इयों की छोडिये आप भी तो ‘तीता-रस-पीता’ वाले हो गये.अपनी डायरी में अपने लिए लिखिये,छापने मत दीजिए.न यहां न ‘सामयिक वार्ता’ में .<BR/>. राजकिशोर का खरापन संदिग्ध है . कितनी गिरावट है सहाय जी को पढ़ने से अन्दाज मिल जाता है .<BR/>अफलातून को धन्यवाद सहितBhagat Rawathttps://www.blogger.com/profile/04032563787384309642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-86965052162883411612008-03-12T19:36:00.000+05:302008-03-12T19:36:00.000+05:30मेरे फेंटा विक्रेता मित्र आप तो बुरा मान गए. गुरु ...मेरे फेंटा विक्रेता मित्र आप तो बुरा मान गए. गुरु अपना पंथ कबी नह्हें बनाता, वो तो चेले ख़ुद बना लेते हैं. सेकडों स्ट्रिंगर दोस्तों का शोषण कर के शोषितों की कहानी छापना अपराध है. इन्सान की हड्डी में फूँक मारो तो वो भी बांसुरी सी बज उठती है. आप उससे राग मल्हार सुनना चाहेंगे? जनसत्ता अब सिर्फ़ स्मृति रह गया है, गालिब की हवेली की तरह जहाँ हाल तक कोएले की ताल चलती थी. इतवार को बीच के दो पन्ने निकल दो तो वैसा ही मोह भंग होगा जैसा किसी सुन्दरी की तस्वीर के बाद उसके चेहरे का एक्स रे देख कर होता है.छिपकली की पूंछ जब तक छिपकली में होती है तभी तक पूंछ है वरना ख़बर तो बनती ही है गुरु. जनसत्ता को पाठकों की कमी नहीं है लेकिन वे हैं सिर्फ़ पत्रकार ही. जब तक प्रभाष जी से संस्कार पाने वाल एक भी व्यक्ति जीवित है, जनसत्ता है. बाकी नाम में क्या धारा है मेरे दोस्त! फिमी कल्याण का नाम कल्याण रख दो तो भी वो रहेगी वही.Bhagat Rawathttps://www.blogger.com/profile/04032563787384309642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-20043886677143138792008-03-12T16:34:00.000+05:302008-03-12T16:34:00.000+05:30aaj bhi jansatta akhbar vishva ke mahan aur karodo...aaj bhi jansatta akhbar vishva ke mahan aur karodo pathak vale un akbaro se behtar hai jo fainta ki botal me chipkali ki pooch ko pahele page ki khabar mante hai.gandhi ji ka harijan koi line laga ker nahi bikta tha jansatta ka print edition aaj bhi rajnaitik aur manviy khabro me aur akhbaro <BR/>se behtar hai sampadak ke daru pine se akbar nahi bigad jata .sp singh bhi daru pite the.aur kam se kam jesika lal hatyakand ke gunahgaro ko bachane vale patrkaro <BR/>se behter jansatta hai.prabhash ji ne koi chela panth nahi chalaya tha aur ghanghor sanghi patrkar bhi unke sath hai.om thanvi koi jansatta ke maibap nahi hai.<BR/>ajitAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-26594511335946725592008-03-11T19:55:00.000+05:302008-03-11T19:55:00.000+05:30ये कोई जनसत्ता के खँडहर अखबार का ट्रेनी लगता है, ज...ये कोई जनसत्ता के खँडहर अखबार का ट्रेनी लगता है, जो बेचारा कभी कन्फर्म नहीं होगाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-7425256689372782922008-03-11T19:43:00.000+05:302008-03-11T19:43:00.000+05:30जनसत्ता को पसंद करने वाले भाईसाहब, आप को न प्रभाष ...जनसत्ता को पसंद करने वाले भाईसाहब, आप को न प्रभाष जी के बरे में कुछ पता है न जनसत्ता के बरे में. क्या कोई व्यक्ती इतना महत्वपूर्ण हो सकता है कि इतने सारे लोग अकारण उसके पीछे पड़ जायें. जनसत्ता ऑनलाइन को प्रभाष जी का आशीर्वाद प्राप्त है या नहीं, यह टू नहीं पता मगर उनके बाद के सम्पादक संघी, या स्वयं सेवक ही आए. एक साहब तो एन जी ओ चला कर कमा रहे है और दूसरे संघ परिवार की कृपा से पत्रकारिता के एक संस्थान के बास बने हुए हैं. बचे वर्त्तमान संपादक तो वे दफ्तर से ज्यादा क्लबों और पार्टी आदि में टुन्न नज़र आते हैं.जनसत्ता जैसे अभियान की इन भी लोगों ने ऐसी-तैसी कर दी है और जब तक वाइरस बना रहेगा, आपको पुराना जनसत्ता कौन देगा. कसूर प्रभाष जी का भी कम नहीं है. इन अखबारी अमरबेलों को जन्म भी टी उन्हीं ने दिया है.Bhagat Rawathttps://www.blogger.com/profile/04032563787384309642noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2584004385274689358.post-10217881558643879422008-03-11T13:37:00.000+05:302008-03-11T13:37:00.000+05:30जनसत्ता को ऑनलाइन देख कर खुशी हुई। आपने कहा है कि ...जनसत्ता को ऑनलाइन देख कर खुशी हुई। आपने कहा है कि यह प्रभाष जी के चेलों का ब्लॉग है। मगर जिस तरह की भाषा और विचारों का इसमें समावेश है, हैरानी होती है कि प्रभाष जी ने ऐसा करने की इजाजत दी होगी। शायद यह सब देख-पढ़ कर उन्हें अफसोस होता हो कि उन्होंने ऐसे चेले पाले या उन्हें ऐसे लोग गुरु मानते हैं। क्या ऐसी भाषा में और ऐसे विचारों के साथ ऑनलाइन जनसत्ता को जनता का अखबार बनाया जा सकता है? लगता है यह किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ मुहिम चलाने का हथियार बन कर रह गया है।Anonymousnoreply@blogger.com